Wednesday 8 January, 2014

DIVA……आज की स्त्री

वादियों में बिखरी है सुकून की तरह
मोहब्बतों में उतरी है जुनून की तरह 
पहली बारिश में सोंधी मिट्टी की महक 
चिडिया के घोसलें में बच्चों की चहक 
कफस के झरोखे से सुबह की आवाज़ 
सहमे से नन्हे परों की पहली परवाज़ 
आसमानों के हौसलों को चुनौती बनी 
एक छोटी बेनाम आवारा बदली 
कांपती शबनम की कोई बूँद सहमी  
खुशबू लुटाने को बेताब अधखिली कली 
बेआवाज़ खामोश कई कई रंगों में 
कभी जलती कभी बुझती पिघलती शमा है वो 
भादों की गीली रात बादलों के झुरमुट  
तारों से छुपता छुपाता पूनम का चन्दा है वो 
उलझी है रिश्तों में तिलिस्म की तरह 
शायर के खयालों के जिस्म की तरह 
पत्थरों पे खेलती पहाड़ी नदिया के जैसे  
हज़ार फितने जगाती मौजे दरिया के जैसे 
बीती सदियों के रंगीन किस्से 
आगे के वक्तों की रूमानी कहानी 
नींद है ख़्वाब है हौसला है वो 
वही है ज़िंदगी वही है दीवा...नी 

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