डूबती आशाओं को बेधती |
सन्नाटों की
छुरियाँ |
छवियों से पूर्णतया
रिक्त |
आसमान और आँखें |
अपनी ही छाया में
विश्राम को उत्सुक |
संघर्ष रत एक
ठूंठ |
काटने को दौड़ते
एकांत में |
प्रतिबिम्ब देखने को
तरसता दर्पण |
निद्रा से बोझिल
पलकें लिए |
अँधेरों की तलाश में
व्यस्त सूरज..................... |
...............अद्भुत
बिम्बों और मुहावरों |
की खोज में गोते
लगाता |
रचना की प्रसव पीड़ा
में |
शब्द जाल बुनता |
बंद पलकों और खुले
प्रज्ञा चक्षुओं से |
पंक्तियाँ
पकाता |
वो जो कवि कहलाता है
भीतर |
जब भी कभी खोलेगा
आँखें |
खोलेगा यदि कभी
तो |
अफ़सोस करेगा
शायद |
कि उसके हाथ में कलम
की जगह |
तलवार क्यों नहीं
है |