Monday 3 September, 2012

सभ्यता

मुझे बताया गया है कि 
एक आदमी हूँ मैं 
और ब्राह्मण हिन्दू 
तमाम और उप विभाजन 
भाई पिता बेटा मित्र सह कर्मचारी 
और ये भी कि 
मैं हूँ चतुर बेईमान शरीफ क्रोधी 
अनगिनत लकीरों से भेदा गया है मुझे 
असंख्य टुकड़े समेटे 
अपने जैसे असंख्य टुकड़े समेटे 
अन्य असंख्य लोगों से मिलना 
उफ़ 
मै कभी अपना ये वाला टुकड़ा आगे कर देता हूँ 
वे अपना वो वाला 
कहीं कभी और 
मेरा दूसरा कोई टुकड़ा 
उनके किसी और ही टुकड़े से मेल खाता है 
कभी नहीं भी मिल पाता 
मै या फिर वो 
या तो पेश नहीं कर पाते उचित टुकड़े उस वक्त 
या चाहते नहीं किसी वजह से 
अनगिनत लोग अनगिनत टुकड़े 
और अनगिनत संयोग 
उचित समय उचित स्थान पर 
उचित टुकड़ा खोजना निकालना पेश करना 
टुकड़ों के टुकड़ों से इस मिलने को 
कहा जाता है सभ्यता 
बहुत पेचीदा खेल है ये 
ज़रा चूके और गए 
और हाँ 
सत्य इस खेल में 
कहीं नहीं आता बीच में 

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