Tuesday 19 July, 2011

वहम

वहम सबको आज़ादी का है मगर
हर कोई यहाँ सीखचों के उस पार है
मिली है किसी को उम्र कैद की सजा
और कोई तो सूली पर खड़ा तैयार है
घुटने लगा है दम अब इस चमन में
बासी हो चुकी है हवा बदलनी चाहिए
बन सकती है जरूर जन्नत ये जमीं 
ये जमीन जन्नत बननी ही चाहिए
बहुत गहरा चली है ये सियाह रात  
अब बस इक नई सुबह की दरकार है
वहम सबको आज़ादी का है मगर
हर कोई यहाँ सीखचों के उस पार है
ज़िंदगी गीत गाती नाचती फिरती हो
बस हर तरफ हों जगमगाते उजाले 
जहाँ सांस लेने पर पाबंदियां न हों 
और न हों दिल कि धडकनों पर ताले
इंसान की सेहत को आज़ादी चाहिए
इस वक्त तो लेकिन आदमी बीमार है
वहम सबको आज़ादी का है मगर
हर कोई यहाँ सीखचों के उस पार है
आम आदमी की बुरी हालत हो गई है 
और इंसानियत किस तरह लाचार है
जो कुछ कर सकते हैं उनके लिए तो
भूख और गरीबी भी महज व्यापार है
चील कौवों की तरह नोंचते फ़िर रहे
ऐसी शासन व्यवस्था को धिक्कार है
वहम सबको आज़ादी का है मगर
हर कोई यहाँ सीखचों के उस पार है

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