Monday 28 June, 2010

कहा तो ऐसा ही गया

टिप टिप होती रही रात भर बारिश
भीगते रहे विश्वास सलीबों पर टंगे
सूख जायें तो बनाई जाये नाव
निकलेंगे दिया लेकर
अंधेरा ढूँढने
दोनो हाथ फ़ैलाये लकड़ी के बुत
ठिठुरती ठंड में जीने की दुआ माँगते रहेंगे
आशायें हारा नहीं करेंगी
प्यास और आग का एक सा हश्र
नियति के हाथों का खिलौना ही रहेगा
झुन्झुने बच्चों से बढ़के
आगे भी बना चुकेंगे अपनी पैठ
पत्थरों के कैन्वस पर आगे भी
उकेरे जायेंगे प्रेम के चित्र
द्रवित हुये इन्सान
जीवन की भाग दौड़ में
हाथों मे लिये रहेंगे पत्थर
सर पर उठाये रहेंगे पत्थर
पाँव मे बांधे रहेंगे पत्थर
सीने में दबाये रहेंगे पत्थर
आँखों को बनाये रहेंगे पत्थर
और समझा करेंगें कि
पत्थर नहीं हैं वे
पाषाण युग अब इतिहास है
कहा तो ऐसा ही गया

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