Thursday 15 April, 2010

कंचन

वो भागता था मुँह करके
धन की ओर
चीखता हुआ कि
स्वर्ग है धन
दूसरा भागता था पीठ करके
धन की ओर
चीखता हुआ कि
नर्क है धन
धन था कि चीखता था वहीं पड़ा हुआ
अरे भाई
महज़ धन हूँ मैं
सुनता कौन था लेकिन

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