Wednesday 10 March, 2010

मा फ़लेषु कदाचन

बोर्ड की प्रथम परीक्षा मे जाने से पूर्व
भगवान की मूर्ति को प्रणाम करने को कहा गया
इससे क्या होगा
एक स्वाभाविक प्रश्न निकला
सब ठीक हो जायेगा
एक घिसा सा उत्तर मिला
पर मै तो सिर्फ़ वही प्रश्न हल कर पाया
जो मुझे आते थे
बाकी नहीं
लेकिन परिणाम शेष था
सो प्रभु के सब ठीक करने का थोड़ा भरोसा भी
अंतत: परीक्षाफ़ल मे उतने ही अंक मिले
जितना मैने हल किया था
तो क्या प्रभु ने कुछ नहीं किया
खैर
और और परीक्षायें आईं
नौकरी पाने के लिये
जीवन साथी का विश्वास पाने के लिये
बच्चों के उचित विकास के लिये
समाज मे ऊँचे स्थान के लिये
हर बार प्रभु को प्रणाम किया
हर बार वही मिला जितना कर पाया
उतना ही मीठा जितना गुड़ डाला गया
न कम न जादा
क्यों फ़िर फ़िर प्रभु को प्रणाम जारी है
क्या इसलिये कि परीक्षा की पूरी तैयारी ही नहीं होती
और जो भी कुछ रह जाता है
उसके प्रति आशंका बनी ही रहती है
उस डर के चलते झुक जाता है सर
एक मूर्ति के समक्ष
श्रद्धा लेशमात्र नहीं
मेरा विश्वास है कि
समर्पण पूर्ण हो अगर
तो नहीं होगा डर
तो हर परीक्षा में
हम पूर्ण तैयार होंगे
और इस पूर्णता का
सौ प्रतिशत अंकों से
कोई लेना देना नहीं है

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