Monday 22 February, 2010

कर्फ़्यू

सब्ज़ी काटते काटते वह उठा
छुरा भोंक दिया उस लड़के के
जिसने घंटी बजाई थी
और जो टोपी पहने था
खून की नदी संसद भवन तक पहुँची
अखबार के दफ़्तर से होकर
पत्रकारों ने स्नान किया आरती की
और भोज की तैयारी में जुट गये
दो गुटों में बँटकर नेताओं ने
मंत्रोच्चार के साथ
एक दूसरे पर फ़ूलों की वर्षा की
बच्चों की छुट्टी हो गई
औरतें खाली और बेपरवाह
कोई ठेलेवाला नहीं गुज़रा कहीं से
बीमार बूढा रात्रि भोजन में
सब्ज़ी न होने से नाराज़ था
और उसने अस्पताल में अनशन कर दिया
नुक्क्ड़ों चौराहों पर
कटी हुई गाजर और मूलियाँ
दुर्गन्ध पैदा करती रहीं
बहुत सी सब्ज़ियाँ कटीं बेमौसम
बहुत से लोग तुरन्त बूढे होकर
भरती हो गये अस्पताल में
यहाँ से बाद में कुछ सीधे स्वर्ग गये
और कुछ घर होकर
किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ा
कईयों ने कहा कि वे प्रभावित हुये
उन्हे भी कोई फ़र्क नहीं पड़ा
फ़र्क ही तो नहीं पड़ता है किसी को कभी भी

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