दो चींटियों की हो रही थी शादी
चल रहा था प्रीतिभोज
सजे धजे लोग
गीत संगीत
हँसी और छेड़छाड़
झूलों पर बच्चों की भीड़
शराब की मस्ती से सराबोर नौजवान
गुब्बारे बेचती चींटियाँ
कुछ मिल जाने की लालसा में
व्यग्र भिखारी चींटियाँ
जिस लॉन पर बसी थी ये खुशनुमा दुनिया
उसके नजदीक बरामदे में खेलता
एक छह माह का दुधमुँहा बच्चा
ठोकर मार एक बड़ी गेंद को
देता है उछाल फ़ेंक और वो
जा गिरती है उस जलसे पर
न जाने कितने मृत
न जाने कितने घायल
न जाने कितने का नुकसान
पता नहीं क्या लिखेंगे अखबार वाले
पता नहीं क्या दिखायेंगे टीवी वाले
उस दुधमुँहे बच्चे को सचमुच
कुछ पता नहीं
Thursday 28 January, 2010
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