गिरा दोगे आँख से
एक आँसू सा
धूल मे मिल जाऊँगा
मै फ़िर उठूँगा
सूर्य रश्मियों पर सवार
ले हवा का साथ
बनके बादल
बरस जाऊँगा
अनगिनत बूँदे
करेंगी तृप्त
तुम्हे ऒर सब को
फ़ेक दोगे
गुठली सा
किसी फ़ल की
दब रहूँगा धरती तले
मै फ़िर उठूँगा
बीज बन
समर्पित सर्व
धरा के गर्भ मे
गगनचुम्बी वृक्ष बन दे
डाल पत्ते फ़ूल
ऒर ढेर सारे फ़ल
तुम्हे ऒर सब को
Saturday 31 October, 2009
Friday 30 October, 2009
पानी केरा बुदबुदा
मुझे मेरे रंग से जानोगे
या जात से कि मेरे पते से
मेरी डिग्रियाँ देखोगे
या फ़िर शरीर
कितनी सीढियाँ चढकर हाँफ़ जाता हूँ
मेरे बाथरूम मे गा चुकने के बाद
वहाँ कोई सुराग मिलेगा मेरा
मेरे कपड़ों का रंग भूरा भी हो सकता था
मेरे जूते मुझे कभी नही काटते
कोई तो डाक्टर दवा देगा ही
रसोई की जाँच भी करके देख लेना
जब कोई उड़ता है तो
उसके पैरों के निशान नहीं बनते
शब्द मुझे बहुत कमजोर लगे तो क्या
तुम कैसे जान लेते हो किसी को
मन कहाँ ठहरा कि विवेचना करो
आत्मा को टेबल पर लिटा कर चीरोगे
नहीं कोशिश भी मत करना
तुम नहीं जान सकोगे
दर असल कुछ है ही नहीं जानने को
बुद्ध को नहीं सुना
पानी का बुलबुला
या जात से कि मेरे पते से
मेरी डिग्रियाँ देखोगे
या फ़िर शरीर
कितनी सीढियाँ चढकर हाँफ़ जाता हूँ
मेरे बाथरूम मे गा चुकने के बाद
वहाँ कोई सुराग मिलेगा मेरा
मेरे कपड़ों का रंग भूरा भी हो सकता था
मेरे जूते मुझे कभी नही काटते
कोई तो डाक्टर दवा देगा ही
रसोई की जाँच भी करके देख लेना
जब कोई उड़ता है तो
उसके पैरों के निशान नहीं बनते
शब्द मुझे बहुत कमजोर लगे तो क्या
तुम कैसे जान लेते हो किसी को
मन कहाँ ठहरा कि विवेचना करो
आत्मा को टेबल पर लिटा कर चीरोगे
नहीं कोशिश भी मत करना
तुम नहीं जान सकोगे
दर असल कुछ है ही नहीं जानने को
बुद्ध को नहीं सुना
पानी का बुलबुला
Thursday 29 October, 2009
कतरन
एक रोशनी के टुकडे पर
मेरे घर का पता होना चाहिये
मुझे एक खत पढना है
जो तुमने नही लिखा कभी
दोनो ही बातों पर
मेरी राय मे डाकिया खास है
ऒर आज भी गरीब है
दूध हमेशा ही मंहगा बिका
दूध की जरूरत हमेशा रही
त्योहारों पर मिठाइयाँ
मिलावट से भी बनती हैं
हलवाई मोटे हैं आज भी
गायें ऒर भैसों की स्थिति मे
कोई सुधार हुआ है क्या
रात कविता सोचने बैठो
तो अच्छी हवा का क्या कहना
कपड़े भी चाहिये
ठंडी हवा से बचने को
मिल की चिमनी
उगलती रहती है काला धुँआ
अब ये मर्जी हवाओं की है
जहाँ चाहें ले जायें
टीबी से जर्जर एक गरीब बूढे को
कवितायें दी जा सकती हैं क्या
दवा ऒर खाने की जगह
मेरे घर का पता होना चाहिये
मुझे एक खत पढना है
जो तुमने नही लिखा कभी
दोनो ही बातों पर
मेरी राय मे डाकिया खास है
ऒर आज भी गरीब है
दूध हमेशा ही मंहगा बिका
दूध की जरूरत हमेशा रही
त्योहारों पर मिठाइयाँ
मिलावट से भी बनती हैं
हलवाई मोटे हैं आज भी
गायें ऒर भैसों की स्थिति मे
कोई सुधार हुआ है क्या
रात कविता सोचने बैठो
तो अच्छी हवा का क्या कहना
कपड़े भी चाहिये
ठंडी हवा से बचने को
मिल की चिमनी
उगलती रहती है काला धुँआ
अब ये मर्जी हवाओं की है
जहाँ चाहें ले जायें
टीबी से जर्जर एक गरीब बूढे को
कवितायें दी जा सकती हैं क्या
दवा ऒर खाने की जगह
Wednesday 28 October, 2009
समर्पण
बिहारी सूर कालिदास ऒर जयदेव
के यहाँ भी नहीं मिले शब्द
जो मै लिखना चाहता था
प्रेम मे तुम्हारे
नहीं भाया रंग कोई
सुबह की लालिमा में
बादलों बरसातों ऒर बगीचों मे
उठाकर उकेर देता
कैनवस पर एक चित्र अमर
प्रेम मे तुम्हारे
मिल गया होता अगर
एक टुकड़ा संगीत
कोयलों नदियों झरनों
या रात की निस्तब्धता मे
मै गाता मधुर गीत कोई
प्रेम मे तुम्हारे
न कोइ फ़ूल ही मै पा सका
भेंट मे देता जो तुम आते
पर मैं समर्पित स्वयं
साथ ले प्राण पण तन मन
ऒर जो भी मेरा अस्तित्वगत है
प्रेम मे तुम्हारे
आ जाओ प्रिय!
के यहाँ भी नहीं मिले शब्द
जो मै लिखना चाहता था
प्रेम मे तुम्हारे
नहीं भाया रंग कोई
सुबह की लालिमा में
बादलों बरसातों ऒर बगीचों मे
उठाकर उकेर देता
कैनवस पर एक चित्र अमर
प्रेम मे तुम्हारे
मिल गया होता अगर
एक टुकड़ा संगीत
कोयलों नदियों झरनों
या रात की निस्तब्धता मे
मै गाता मधुर गीत कोई
प्रेम मे तुम्हारे
न कोइ फ़ूल ही मै पा सका
भेंट मे देता जो तुम आते
पर मैं समर्पित स्वयं
साथ ले प्राण पण तन मन
ऒर जो भी मेरा अस्तित्वगत है
प्रेम मे तुम्हारे
आ जाओ प्रिय!
Tuesday 20 October, 2009
वार्तालाप
हम मिलें और बात करें
जो हम कहना नही जानते
और कहना चाहते हैं
तुम सुनो भी
तो क्या वही समझोगे
जो हम कहना नही जानते
और कहना चाहते हैं
खुद से पूछता हूँ
कहना चाहते क्यों हो
कहने से क्या होगा
सिर्फ़ कह देने के सिवा
बिन कहे तुम समझो तो ठीक
और अगर नहीं
तो कहना क्या है
इस दुनिया में
सब कहना और सुनना
बेकार ही नहीं तो और क्या है
जब
सब जो ज़रूरी है
बिन कहे ही कहा जा सकता है
बिन सुने ही सुना जा सकता है
बोलो क्या कहते हो!
जो हम कहना नही जानते
और कहना चाहते हैं
तुम सुनो भी
तो क्या वही समझोगे
जो हम कहना नही जानते
और कहना चाहते हैं
खुद से पूछता हूँ
कहना चाहते क्यों हो
कहने से क्या होगा
सिर्फ़ कह देने के सिवा
बिन कहे तुम समझो तो ठीक
और अगर नहीं
तो कहना क्या है
इस दुनिया में
सब कहना और सुनना
बेकार ही नहीं तो और क्या है
जब
सब जो ज़रूरी है
बिन कहे ही कहा जा सकता है
बिन सुने ही सुना जा सकता है
बोलो क्या कहते हो!
Thursday 15 October, 2009
सर्वे भवन्तु सुखिन:
युग बीत गये केवल कहते कहते
अब सच मे भाईचारा दिखाइये
जला डालिये कड़वाहट के बीज
प्रेम ऒर दया के फ़ूल खिलाइये
सबकी खुशियों मे शरीक होइये
बोझ दुखों का मिल के उठाइये
झगड़ों को बीती बात बनाइये
पड़ोसियों को तरफ़दार बनाइये
ये जमीन स्वर्ग बन सकती है
अपने भीतर का दिया जलाइये
हर इन्सान दीपावाली मना सके
एक ऎसी भी दीपावली मनाइये.
दीपावली पर समस्त विश्व को असीम मंगल कामनायें.
अब सच मे भाईचारा दिखाइये
जला डालिये कड़वाहट के बीज
प्रेम ऒर दया के फ़ूल खिलाइये
सबकी खुशियों मे शरीक होइये
बोझ दुखों का मिल के उठाइये
झगड़ों को बीती बात बनाइये
पड़ोसियों को तरफ़दार बनाइये
ये जमीन स्वर्ग बन सकती है
अपने भीतर का दिया जलाइये
हर इन्सान दीपावाली मना सके
एक ऎसी भी दीपावली मनाइये.
दीपावली पर समस्त विश्व को असीम मंगल कामनायें.
Wednesday 14 October, 2009
लीला
हर सुबह नया एक जीवन है
शाम सुहानी वादा कल का
हर मौज़ भँवर मे डालेगी
हर माझी नाव डुबोयेगा
डरते हुये तो युग बीता
अब कितना वक्त गँवायेगा
जो होना है सो होगा ही
समझो सब कुछ नाटक ही
अभी जियो ऒर यहीं जियो
जीवन है जीना पल पल का
कोई नही आता ऊपर से
खुद अपना जिम्मा लेलो
भला बुरा सब हाथ हमारे
खुद झन्झावातों को झेलो
पैदल चलते थक जाओ तो
या बैठ रहो या पर लेलो
सुख दुख आते जाते रहते हैं
जीवन नाम इसी हलचल का
हर सुबह नया एक जीवन है
शाम सुहानी वादा कल का
शाम सुहानी वादा कल का
हर मौज़ भँवर मे डालेगी
हर माझी नाव डुबोयेगा
डरते हुये तो युग बीता
अब कितना वक्त गँवायेगा
जो होना है सो होगा ही
समझो सब कुछ नाटक ही
अभी जियो ऒर यहीं जियो
जीवन है जीना पल पल का
कोई नही आता ऊपर से
खुद अपना जिम्मा लेलो
भला बुरा सब हाथ हमारे
खुद झन्झावातों को झेलो
पैदल चलते थक जाओ तो
या बैठ रहो या पर लेलो
सुख दुख आते जाते रहते हैं
जीवन नाम इसी हलचल का
हर सुबह नया एक जीवन है
शाम सुहानी वादा कल का
Tuesday 13 October, 2009
और नहीं
एक मुर्दा भविष्य
एक लचर वर्तमान
अभी ठॊर नहीं
राह किसी ओर नहीं
एक जमात मूढ़ों की
बिरादरी गूँगों की
किसी की खैर नहीं
पर ज़रा शोर नहीं
नफ़रत के बीज
दुश्मनी के पेड़
अशान्ति के फ़ल
शराफ़त का दॊर नहीं
ये शोषण लाचारी
गरीबी महामारी
बढती बेरोज़गारी
बस अब ऒर नहीं
एक लचर वर्तमान
अभी ठॊर नहीं
राह किसी ओर नहीं
एक जमात मूढ़ों की
बिरादरी गूँगों की
किसी की खैर नहीं
पर ज़रा शोर नहीं
नफ़रत के बीज
दुश्मनी के पेड़
अशान्ति के फ़ल
शराफ़त का दॊर नहीं
ये शोषण लाचारी
गरीबी महामारी
बढती बेरोज़गारी
बस अब ऒर नहीं
Monday 12 October, 2009
Thursday 8 October, 2009
समन्दर की जो प्यास लिये फ़िरते हैं
वो अक्सर पोखरों से फ़रियाद करते हैं
चमन को होगी लहू की ज़रूरत वरना
लोग यूँही कब मुझ को याद करते हैं
तेरे ठिकाने का पता नहीं अभी हमको
सर अपना हर दर पे झुकाया करते हैं
होशियार रहें जो चढ़ने की ठान बैठे हैं
ऊँची जगहों से ही लोग गिरा करते हैं
बन गई है यहाँ मस्जिद मैखाना हटाके
लोग अब कम ही इस तरफ़ गुजरते हैं
क्या क्या गुजरती है हुस्न पर देखिये
खूबसूरत फ़ूल बाजार मे बिका करते हैं
वो अक्सर पोखरों से फ़रियाद करते हैं
चमन को होगी लहू की ज़रूरत वरना
लोग यूँही कब मुझ को याद करते हैं
तेरे ठिकाने का पता नहीं अभी हमको
सर अपना हर दर पे झुकाया करते हैं
होशियार रहें जो चढ़ने की ठान बैठे हैं
ऊँची जगहों से ही लोग गिरा करते हैं
बन गई है यहाँ मस्जिद मैखाना हटाके
लोग अब कम ही इस तरफ़ गुजरते हैं
क्या क्या गुजरती है हुस्न पर देखिये
खूबसूरत फ़ूल बाजार मे बिका करते हैं
Wednesday 7 October, 2009
सिर्फ़ तस्वीर
मेरे पास तुम्हारी एक तस्वीर है
जो बहुत खूबसूरत है
लेकिन
तस्वीर ही तो है
कुछ खूबसूरत वादे मेरे पास हैं
जो शायद सच भी हों
लेकिन
बातें ही तो हैं
जो शाम ज़ुल्फ़ों की छाँव मे गुजरे
कामयाब ऒर हसीन है
लेकिन
सपने ही तो हैं
हर दर्द जो ये दिल सहता रहा है
चाहे जिसने भी दिये हों
लेकिन
अपने ही तो हैं
जो बहुत खूबसूरत है
लेकिन
तस्वीर ही तो है
कुछ खूबसूरत वादे मेरे पास हैं
जो शायद सच भी हों
लेकिन
बातें ही तो हैं
जो शाम ज़ुल्फ़ों की छाँव मे गुजरे
कामयाब ऒर हसीन है
लेकिन
सपने ही तो हैं
हर दर्द जो ये दिल सहता रहा है
चाहे जिसने भी दिये हों
लेकिन
अपने ही तो हैं
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